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Deoria News देवरिया टाइम्स।

देवरिया एक ऐसे मनीषी के चरणों से पावन है जो योगी के साथ-साथ सच्चा राष्ट्र पुजारी था। जिसने देवरिया में योग-वैराग्य, अध्यात्म के साथ-साथ राष्ट्र-प्रेम की गंगा को प्रवाहित किया था। इस सच्चे मनीषी के वचनों से प्रभावित होकर बाबा राघवदासजी ने इसे अपना सच्चा गुरु स्वीकार किया था। यूं तो देवरिया अनेक राष्ट्र-भक्तों, समाजसेवियों, शिक्षाविदों, राजनेताओं एवं संतों की नगरी रही है पर योगिराज अनंत महाप्रभु जैसे बहुत कम विलक्षण महापुरुष इस क्षेत्र को अपने चरणों से पावन किए हैं, लोगों में अध्यात्म एवं योग का संचार किए हैं।

अनंत महाप्रभु का जन्म सन 1777 में लखनऊ के सहादतगंज मुहल्ले में एक संभ्रांत वाजपेयी परिवार में हुआ था। चूँकि इनका जन्म अनंत चतुर्दशी के दिन हुआ अस्तु इनके पिताश्री श्री सुनंदन बाजयेपी ने इनका नाम अनंत रख दिया। ये बचपन से ही सत्य के समर्थक एवं राष्ट्र के पुजारी थे।
क्रांतिकारी अनंत के योगिराज अनंत महाप्रभु बनने की घटना बहुत ही रोचक है। एक बार की बात है कि अनंत के बाग में एक मोर नृत्य कर रहा था तभी वहाँ एक अंग्रेज आ गया और उसने अपनी क्रूरता का परिचय देते हुए उस मोर को गोली मार दी। मोर के तो प्राण-पखेरू उड़ गए पर यह दृश्य अनंत को एकदम हिलाकर रख दिया। अनंत ने तुरंत ही अपने जमादार मोकम सिंह को ललकारकर कहा कि इस दुष्ट फिरंगी को गोली मार दो। अनंत का आदेश मिलते ही मोकम सिंह ने एक विश्वासभक्त सैनिक की भाँति फिरंगी पर गोली दाग दी। गोली लगते ही फिरंगी लहूलुहान होकर जमीन पर गिर पड़ा एवं अनंत मोकम सिंह के साथ नौ दो ग्यारह हो गए। यह केस कुछ दिनों तक चला और उसके बाद अनंत इससे बरी हो गए।

अनंत के विलक्षण हाव-भाव को देखते हुए इनके पिता ने इनका ध्यान घर की ओर लगाने के लिए बालपन में ही इनकी शादी कर दी। पर अनंत अधिक दिनों तक मोह-माया में बँधे न रह सके एवं 16 वर्ष की आयु में अपने परिवार को त्यागकर वैराग्य धारण कर लिए। वैराग्य लेने के पीछे इनकी देश एवं समाज सेवा की ललक साफ दिखती है। इस वैरागी के दिल में माँ भारती को स्वतंत्र कराने की आग धधक रही थी।
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में इन्होंने गुप्त रूप से स्वतंत्रता सेनानियों की खूब सहायता की। यहाँ तक कि मंगल पांडेय से भी इनकी गहरी दोस्ती थी। अनंत की यह गतिविधियाँ अंग्रेजों से छुपी नहीं रहीं और अंग्रेजों ने इनकी खोज तेज कर दी। अनंत ने भी अंग्रेजों से बचने का रास्ता निकाल लिया। अब वे साधू वेष में रहने लगे।

कहा जाता है कि 99 वर्ष की अवस्था में अनंत महाप्रभु बरहज (देवरिया) पधारे एवं यहाँ गौरा गाँव के बेचू साहू के बाग को अपना आसियाना बना लिए। यहाँ उन्होंने योग साधना शुरु कर दी। कहा जाता है कि इनकी योग साधना का प्रभाव इस बाग के पेड़-पौधों पर इस तरह पड़ा कि जो पेड़ सूख गए थे वे फिर से पनप उठे, उनकी डालियाँ हरिहरा गईं। इस बात की भनक जब गाँव-जवार के लोगों को पड़ी तो इनके दर्शन के लिए लोगों की भीड़ उमड़ने लगी। इस दिव्य पुरुष की एक झलक पाने के लिए एवं इनकी सेवा के लिए भक्त हाथ जोड़े खड़े रहने लगे। इन्होंने अपनी योग साधना जारी रखी। ये अपनी योग साधना के दौरान केवल गाय के दूध का सेवन करते थे। इन्होंने लगभग 40 वर्षों तक देवरिया की इसी पवित्र भूमि को अपनी योग साधना से साधित करते हुए योग की गंगा बहाते रहे एवं सदा अपने सेवकों, भक्तों से कहते रहे कि योग-साधना कोई प्रदर्शन की वस्तु नहीं है। इसका उपयोग आत्म कल्याण के साथ ही साथ विश्व कल्याण के लिए होना चाहिए।

इनके बारे में एक और बहुत ही रोचक कहानी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि सरयू के पास रहते हुए भी ये कभी सरयू में स्नान करने नहीं गए। एक बार की बात है कि इनके परम भक्त द्वारिका प्रसाद कुछ भक्तों के साथ इनके दर्शन को गए और इनसे प्रार्थना किए कि महाराज, सरयू के पास रहते हुए भी कभी किसी ने आपको सरयू में स्नान करते हुए नहीं देखा। इसका क्या कारण है? द्वारिकाजी की बातों को सुनकर योगिराज अनंत महाप्रभु मुस्कुराए और प्रेम से बोले। आपने कभी देखा है क्या, किसी बच्चे को माँ के पास जाते हुए। माँ तो खुद ही अपनी संतान से मिलने के लिए सदा आतुर रहती है। और यह क्या? कहते है कि उनके इतना कहते ही द्वारिकाजी और अन्य भक्तों को लगा कि वे लोग सरयू की तेज धार में बह रहे हैं। ऐसे चमत्कारिक एवं ईश्वरभक्त थे योगिराज अनंत महाप्रभु।

यह महान योगी एवं राष्ट्रभक्त 140 वर्ष की अवस्था में सदा के लिए समाधिस्थ हो गया। आज भी इनकी मूर्ति बरहज स्थित परमहंस आश्रम में विराजमान है।

धन्य है देवरिया का यह बरहजी क्षेत्र जहाँ ऐसे दिव्य योगी के पावन चरण ने इस क्षेत्र की मिट्टी को सदा-सदा के लिए स्वर्गिक आनंद से परिपूर्ण बना दिया।

आज भी बरहज (देवरिया) का यह परमहंस आश्रम ईश्वर भक्तों एवं राष्ट्र भक्तों के लिए प्रेरणा एवं गौरव का केंद्र है। यह एक साधक से सिद्ध बने महायोगी के जीवनी को समेटे होने के साथ ही साथ माँ भारती के सपूतों की गाथाएँ सुनाते हुए लोगों का सामाजिक, शैक्षिक एवं नैतिक विकास करता आ रहा है।

प्रेम से बोलिए योगिराज अनंत महाप्रभु की जय। बरहज की जय।। भारत भक्तों एवं संतों की जय।।

-प्रभाकर पाण्डेय

स्त्रोत: Deoria Blog

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