देवरिया टाइम्स।। विरासतों को संवारने और संरक्षित करने के सरकारी दावों का सच देखना हो तो यहां आइये। कलेक्ट्रेट परिसर में जमालुद्दीन खा एडवोकेट मेमोरियल लाल लाइब्रेरी भवन का पुरसाहाल नहीं है। साल 2017 में इसके निर्माण कार्य का शिलान्यास हुआ। तब यहां शरद कुमार सिंह जिलाधिकारी थे। उन्होंने तीन दिसंबर को इस प्रस्ताव के निर्माण की आधारशिला रखी थी।
दी कलेक्ट्रेट सेंट्रल बार एसोसिएशन के प्रस्ताव पर जिला प्रशासन ने लाइब्रेरी के लिए 900 वर्ग फीट जमीन आवंटित की थी। जमालुद्दीन खा के परिजनों ने इस लाइब्रेरी को बनवाने की जिम्मेदारी उठाई। उनके बेटे सामाजिक कार्यकर्ता राशिद खान पिता के नाम पर ला लाइब्रेरी बनाने की जिम्मेदारी का निर्वाह किया।
कलेक्ट्रेट परिसर में इमारत तैयार करके जिला प्रशासन को सौंप दिया। लेकिन, सात साल से यह भवन तालों की पहरेदारी में है हालांकि, सरकार विरासतों को संवारने में जुटी है। आश्चर्य तो यह कि इस विरासत पर प्रशासन की नजर है ही नहीं। ला लाइब्रेरी नए अधिवक्ताओं को विधि की महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध कराने में सहायक हो सकती है, यहां से ज्ञान अर्जित कर अधिवक्ता मुकदमों की पैरवी का नया कीर्तिमान रच सकते हैं। लेकिन, यह संभव तो तब होगा, जब यह लाइब्रेरी क्रियाशील हो। अगर ऐसा नहीं है तो कम से कम कलेक्ट्रेट में विरासतों के संरक्षण और संवर्धन का दावा तो मजाक ही रहेगा।