देवरिया टाइम्स। महर्षि देवरहा बाबा आश्रम मईल में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी विवाह के प्रसंग का वर्णन डॉ. श्यामसुंदर पराशर ने किया। भगवान के विवाह के प्रसंग को सुनकर पंडाल में बैठे श्रद्धालु भाव-विभोर हो गए।
कथा में पाराशर ने बताया कि रुक्मिणी के भाई रुक्मि ने उनका विवाह शिशुपाल के साथ निश्चित किया था, लेकिन रुक्मिणी ने संकल्प लिया था कि वह शिशुपाल को नहीं केवल कृष्ण को पति के रूप में वरण करेंगी। उन्होंने कहा कि शिशुपाल असत्य मार्गी है और द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण सत्य मार्गी इसलिए मैं असत्य को नहीं सत्य को अपनाऊंगी। भगवान श्रीद्वारकाधीश जी ने रुक्मिणी के सत्य संकल्प को पूर्ण किया और उन्हें पत्नी के रूप में वरण करके प्रधान पटरानी का स्थान दिया।
रुक्मिणी विवाह प्रसंग पर आगे कथा वाचक पं.पाराशर ने कहा कि इस प्रसंग को श्रद्धा के साथ श्रवण करने से कन्याओं को अच्छे घर और वर की प्राप्ति होती है और दांपत्य जीवन सुखद रहता है। इस पावन प्रसंग के दौरान दान की विशेष महिमा है। प्रभु की प्रत्येक लीला रास है। हमारे अंदर प्रति क्षण रास हो रहा है, सांस चल रही है तो रास भी चल रहा है, यही रास महारास है इसके द्वारा रस स्वरूप परमात्मा को नचाने के लिए एवं स्वयं नाचने के लिए प्रस्तुत करना पड़ेगा, उसके लिए परीक्षित होना पड़ेगा। जैसे गोपियां परीक्षित हो गईं। इस दौरान कृष्ण-रुक्मिणी की आकर्षक झांकी बनाई गई। जिनके दर्शन करने भक्तजन भाव विभोर हो गए। इसके पूर्व उन्होंने भगवान कृष्ण के संपूर्ण विवाह की कथा का रसपान कराया। कथा के अंत में भगवान की आरती के साथ विशाल भंडारा का आयोजन किया गया।